Tuesday, March 29, 2016

रमेशराज की जनकछन्द में तेवरियाँ




                                  


रमेशराज की जनकछन्द में तेवरियाँ ]
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||जनकछन्द में तेवरी || ---1.
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हर अनीति से युद्ध लड़
क्रान्ति-राह पर यार बढ़बैठ न मन को मार कर।

खल का नशा उतार दे
शब्दों को तलवार देचल दुश्मन पर वार कर।

ले हिम्मत से काम तू
होती देख न शाम तूरख हर कदम विचार कर।

घनी वेदना को हटा
घाव-घाव मरहम लगापतझड़ बीच बहार कर।

अनाचार-तम-पाप की
जग बढ़ते संताप कीरख दे मुण्डि उतार कर।

कुंठा से बाहर निकल
अपने चिन्तन को बदलअब पैने हथियार कर।
+रमेशराज



+||जनक छन्द में तेवरी || ---2.
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सिस्टम में बदलाव ला
दुःख में सुख के भाव लाआज व्यवस्था क्रूर है।

अंधकार भरपूर है
माना मंजिल दूर हैबढ़ आगे फिर नूर है।

मन में अब अंगार हो,
खल-सम्मुख ललकार होकह मत उसे हुजूर है

अग्निवाण तू छोड़ दे
चक्रब्यूह को तोड़ देबनना तुझको शूर है।
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---3.
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कछुए जैसी चाल का
कुंठाओं के जाल कामत बनना भूगोल तू।

थर-थर कंपित खाल का
थप्पड़ खाते गाल कामत बनना भूगोल तू।

कायर जैसे हाल का
किसी सूखते ताल कामत बनना भूगोल तू।

छोटे-बड़े दलाल का
या याचक के भाल कामत बनना भूगोल तू।

केवल रोटी-दाल का
किसी पराये माल कामत बनना भूगोल तू।

उत्तरहीन सवाल का
पश्चाताप-मलाल कामत बनना भूगोल तू।
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---4.
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अपना ले तू आग को
आज क्रान्ति के राग कोजीवन हो तब ही सफल।

अपने को पहचान तू
जी अब सीना तान करडर के भीतर से निकल।

जग रोशन करना तुझे
रंग यही भरना तुझेसिर्फ सत्य की राह चल।

तू बादल है सोच ले
मरु को जल है सोच लेछाये दुःख का खोज हल।
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---5.
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क्या घबराना धूप से
ताप-भरे लू-रूप सेआगे सुख की झील है।

दुःख ने घेराक्यों डरें
घना अँधेराक्यों डरेंहिम्मत है-कंदील है।

भले पाँव में घाव हैं
कदम नहीं रुक पायँगेक्या कर लेगी कील है।

खुशियों के अध्याय को
तरसेगा सच न्याय कोये छल की तहसील है।

है बस्ती इन्सान की
हर कोई लेकिन यहाँ बाज गिद्ध वक चील है।

पीड़ा का उपचार कर
भाग लिखें की’ आज सुनचलनी नहीं दलील है।
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---6.
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दूर सूखों का गाँव है
जीवन नंगे पाँव हैटीस-चुभन का है सफर।

सिसकन-सुबकन से भरे
अविरल क्रन्दन से भरेघायल मन का है सफर।

मरे-मरे से रंग में
बोझिल हुई उमंग मेंदर्द-तपन का है सफर।

इस संक्रामक घाव की
बातें कर बदलाव कीक्यों क्रन्दन का है सफर।
+रमेशराज


+||जनक छन्द में तेवरी || ---7.
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जीवन कटी पतंग रे
हुई व्यवस्था भंग रेअब तो मुट्ठी तान तू।

दुःख ही तेरे संग रे
स्याह हुआ हर रंग रेअब तो मुट्ठी तान तू।

कुचलें तुझे दबंग रे
बन मत और अपंग रेअब तो मुट्ठी तान तू।

गायब खुशी-तरंग रे
सब कुछ है बेढंग रेअब तो मुट्ठी तान तू।

लड़नी तुझको जंग रे
बजा क्रान्ति की चंग रेअब तो मुट्ठी तान तू।
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---8.
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उधर वही तर माल है
मस्ती और धमाल हैसोता भूखे पेट तू।

महँगी चीनी-दाल है
घर अभाव का जाल हैसोता भूखे पेट तू।

आँखों में ग़म की नमी
सुख का पड़ा अकाल हैसोता भूखे पेट तू।

चुप मत बैठ विरोध कर
सिस्टम करे हलाल हैसोता भूखे पेट तू।
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---9.
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पापी के सर ताज रे
अब गुण्डों का राज रेबड़े बुरे हालात हैं।

कैसा मिला स्वराज रे
सब बन बैठे बाज रेबड़े बुरे हालात हैं।

गिरे बजट की गाज रे
पीडि़त बहुत समाज रेबड़े बुरे हालात हैं।

ऐसे ब्लाउज आज रे
जिनमें बटन न काज रेबड़े बुरे हालात हैं।

नेता खोयी लाज रे
सब को  छलता आज रेबड़े बुरे हालात हैं।

लेपे चन्दन आज रे
जिनके तन में खाज रेबड़े बुरे हालात हैं।
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---10.
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नैतिकता की देह पर
निर्लजता का बौर हैअजब सभ्य ये दौर है।

गिरगिट जैसे रंग में
अब नेता हर ठौर हैअजब सभ्य ये दौर है।

जो गर्दभ-सा रैंकता
वो गायक सिरमौर हैअजब सभ्य ये दौर है।

पश्चिम की अश्लीलता
निश्चित आनी और हैअजब सभ्य ये दौर है।
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---11.
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तम में आये नूर को
प्रेम-भरे दस्तूर कोचलो बचायें आज फिर ।

विधवा खुशियों के लिये
चूनर लहँगा चूडि़याँमेंहदी लायें आज फिर ।

घर सुख का जर्जर हुआ
चल कलई से पोत कर रंग जमायें आज फिर।

जली बहू की चीख की
जिस नम्बर से कॉल हैउसे मिलायें आज फिर।

चर्चा हो फिर क्रान्ति पै
मन पर छायी क्लान्ति पैकरें सभाएँ आज फिर।

जनक छन्द में तेवरी
भरकर इसमें आग-सीचलो सुनायें आज फिर।
+रमेशराज





+||जनक छन्द में तेवरी || ---12.
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हारे-हारे लोग हैं,
सुबह यहाँ पर शाम हैदुःख-पीड़ा अब आम है। 

सब में भरी उदासियाँ
मन भीतर कुहराम हैदुःख-पीड़ा अब आम है।

लिख विरोध की तेवरी
तभी बनेगा काम हैदुःख-पीड़ा अब आम है।
+रमेशराज



+||जनक छन्द में तेवरी || ---13.
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अरसे से बीमार को,
मन पर चढ़े बुखार कोपैरासीटामॉल हो।

फिर दहेज के राग ने
बहू जलायी आग नेअब उसको बरनाॅल हो।

छद्मरूपता यूँ बढ़ी
छोटी-सी दूकान भीतनती जैसे मॉल हो।

तू चाहे क्यों प्यार में
स्वागत या सत्कार में मीठ-मीठा ऑल हो।

मरु में भी ऐसा लगा
करे शीत ज्यों रतजगाआया स्नोफॉल हो।

वो इतना बेशर्म था
यूँ खेला जज्बात सेजैसे कोई बॉल हो।
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---14.
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तंग हाल था वो भले
बस सवाल था वो भलेपर भीतर से आग था।

कड़वा-कड़वा अब मिला
बेहद तीखा अब मिलाजिसमें मीठा राग था।

ऐसे भी क्षण हम जिये
गुणा सुखों में हम कियेकिन्तु गुणनफल भाग था।

है कोई इन्सान वह
यह हमने समझा मगरपता चला वह नाग था।
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---15.
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इसमें बह्र तलाश मत
इसे ग़ज़ल मत बोलियोजनक छंद में तेवरी।

इसमें किस्से क्रान्ति के
चुम्बन नहीं टटोलियोजनक छन्द में तेवरी।

सिर्फ काफिया देखकर
यहाँ कुमति मत घोलियोजनक छंद में तेवरी।

रुक्न और अर्कान से
मात्राएँ मत तोलियोजनक छन्द में तेवरी।

यह रसराज विरोध है
नहीं टिकेगा पोलियोजनक छंद में तेवरी।

इसमें तेवर आग के
यहाँ न खुश-खुश डोलियोजनक छंद में तेवरी।
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---16.
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रति की रक्षा हेतु नित
लिये विरति के भाव हैजनक छंद में तेवरी।

करे निबल से प्यार ये
खल को दे नित घाव हैजनक छंद में तेवरी।

इसमें नित आक्रोश है
दुष्टों पर पथराव हैजनक छंद में तेवरी।

अगर बदलता कथ्य तो
शिल्प गहे बदलाव हैजनक छंद में तेवरी।

शेर नहीं रनिवास का
तेवर-भरा रचाव हैजनक छंद में तेवरी।
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---17.
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बढ़ते अत्याचार से
चंगेजी तलवार सेअब भारत आज़ाद हो।

पनपे हाहाकार से
फैले भ्रष्टाचार सेअब भारत आज़ाद हो।

ब्लेड चलाते हाथ हैं,
पापी पाॅकिट मार सेअब भारत आज़ाद हो।

कहते नेताजी जिसे
जन के दावेदार सेअब भारत आज़ाद हो।

जिसे विदेशी भा रहे
ऐसे हर गद्दार से अब भारत आज़ाद हो।
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---18.
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आज भले ही घाव हैं
मन में दुःख के भाव हैंबदलेंगे तकदीर को।

बहुत दासता झेल ली
अब आज़ादी चाहिएतोड़ेंगे जंजीर को।

अजब व्यवस्था आपकी
जल का छल चहुँ ओर हैमछली तरसे नीर को।

संत वेश में बन्धु तुम
रहे आजकल खूब हो, कर बदनाम कबीर को।

जिनसे खुद का घर दुःखी
उनके दावे देखिए हरें जगत की पीर को
+रमेशराज




+||जनक छन्द में तेवरी || ---19.
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पापी के सम्मान में,
हर खल के गुणगान में, हमसे आगे कौन है!

परनिन्दा में हम जियें
झूठ-भरे व्याख्यान में, हमसे आगे कौन है!

दंगे और फ़साद की
अफवाहों की तान में, हमसे आगे कौन है!

घपलों में अव्वल बने
घोटालों के ज्ञान में, हमसे आगे कौन है!

बेचें रोज जमीर को
खल जैसी पहचान में, हमसे आगे कौन है!

अमरीका के खास हम
पूँजीवाद उठान में, हमसे आगे कौन है!

लेकर नाम कबीर का
अवनति के उत्थान में, हमसे आगे कौन है!

ब्लू फिल्मों को देखकर
आज रेप-अभियान में, हमसे आगे कौन है!

हम सबसे पीछे खड़े
बोल रहे मैदान में हमसे आगे कौन है!

भीख माँगकर विश्व से
कहें-‘बताओ दान में हमसे आगे कौन है’!
+रमेशराज
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रमेशराज, 15/109 , ईसानगर , निकट-थाना सासनी गेट , अलीगढ़-202001
मो.-९६३४५५१६३०